विवाह के मौके पर दूल्हे को घोड़ी पर ही क्यों बैठाया जाता है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर बहुत कम लोग जानते हैं। हिंदुओं में विवाह के अनेक रीति-रिवाज होते हैं। इसी में से एक है दूल्हे का घोड़ी पर बैठना। विवाह में घोड़ी के स्थान पर कोई और जानवार इस्तेमाल नहीं किया जाता। आगे पढ़िए, इस प्रश्न का उत्तर और इसके लिए प्रचलित विभिन्न कथाएं
इसकी वजह यह है कि भगवान श्रीराम और सीता का स्वयंवर हो या फिर श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह, पत्नी को पाने के लिए युद्ध के हालात बने। यह युद्ध घोड़े पर बैठकर ही किया गया। इसलिए विवाह के मौके पर वधु रूपी स्त्रीधन को घोड़ी पर बैठाकर अपने घर लाने की परंपरा शुरू हुई।
घोड़े को जहां शौर्य और वीरता का प्रतीक माना गया है वहीं घोड़ी को उत्पत्ति का कारक माना जाता है। इसी के चलते दूल्हे को घोड़ी पर बैठाकर बारात ले जाने की परंपरा प्रचलन में आई। इस संबंध में एक और कथा प्रचलित है जिसके मुताबिक एक खास कारण से शादी में घोड़ी की परंपरा शुरू हुई थी।
जब सूर्य और उनकी चार संतानें यम, यमी, तपती और श्नैश्चर की उत्पत्ति हुई, उस समय सूर्य की पत्नी रूपा ने घोड़ी का ही रूप धारण किया था। बस इन्हीं पौराणिक मान्यताओं के कारण घोड़ी को विवाह में महत्वपूर्ण स्थान मिला।
जब सूर्य और उनकी चार संतानें यम, यमी, तपती और श्नैश्चर की उत्पत्ति हुई, उस समय सूर्य की पत्नी रूपा ने घोड़ी का ही रूप धारण किया था। बस इन्हीं पौराणिक मान्यताओं के कारण घोड़ी को विवाह में महत्वपूर्ण स्थान मिला।
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