Sunday 8 May 2016

फाग की मस्ती और ‘चंग की थाप’पर झूम उठा रेगिस्तानी थार

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बाड़मेर : आधुनिकता की दौड़ के बावजूद थार मरुस्थल में लोक कला और संस्कृति से जुड़ी चंग की थाप के साथ ही फागुनी लूर की स्वरलहरियां की गूंज सुनाई दे रही है। राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले के ग्रामीण अंचलों में होली की धूम मची हैं, चौपालों पर सूरज ढलते ही ग्रामीण चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं, वहीं फागुनी लूर गाती महिलाओं के दल फागोत्सव के प्रति दीवानगी का एहसास कराती हैं। सीमावर्ती बाड़मेर जिले की लोक परम्पराओं का निर्वहन ग्रामीण क्षैत्रों में आज भी हो रहा हैं। 
 
रंग और मद के इस त्यौहार के प्रति ग्रामीण अंचलों में दीवानगी बरकरार हैं। ग्रामीण चौपालों पर ग्रामीणों के दल सामूहिक रुप से चंग की थाप पर फाग गीत गाते नजर आते हैं। जिले में लगातार पड़ रहे अकाल का प्रभाव अधिक नजर नहीं आ रहा है। होली के धमाल के लिए प्रसिद्ध सनावड़ा गांव के बुजुर्ग रुपाराम ने बताया कि अकाल के कारण बाहर गये गांव के युवा त्यौहार मनाने के लिये पहुंचने लगे है। जिले में होली से 15 दिन पूर्व गांव में होली का आलम शुरु होता हैं। चौपाल पर शाम होते होते गांव के बड़े, बुढे जवान बच्चे सभी एकत्रित हो जाते हैं। चंग बजाने वालो की थाप पर ग्रामीण सामूहिक रुप से फाग गाते हैं। वहीं गांव की महिलाए रात्री में एक जगह एकत्रित हो कर बारी-बारी से घरों के आगे फाग गाती हैं। जो महिलाऐं इस दल में नहीं आती उस महिला के घर के आगे जाकर महिला दल अश्लील फाग गाती हैं, जिसे सुनकर अंदर बैठी महिला शर्माकर दल मे शामिल हो जाती हैं। 
 
फाग की मस्ती से सरोबार महिलाओं द्वारा दो दल बनाकर लूर फाग गाया जाता हैं। लूर में दोनों महिला दल आपस में गीतों के माध्यम से सवाल जवाब करती हैं। हालांकि बदलते दौर में लूर थार की परम्परा की गुंज कुछ कम हुयी है लेकिन अभी भी कई जगह इसकी घूम रहती है। फाग गीतों के साथ साथ डाण्डिया गैर नृत्य का भी आयोजन होता हैं। भारी भरकम घुंघरु पांवों में बांध कर हाथों में आठ-आठ मीटर लंबे डाण्डियेंल करोल की थाप और थाली टंकार पर जब गेरिऐं नृत्य करते हैं तो लोक संगीत की छटा माटी की सौंधी में घुल जाती हैं। जिल के सनावड़ा में होली के दूसरे दिन बड़े स्तर पर गेर नृत्यो का आयोजन होता है, जिसमें आसपास के गांवों के कई दल हिस्सा लेते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में होली का रंग जमने लगा हैं। शहरी क्षेत्र में भी गेरियों के दल इस बार नजर आ रहे हैं। जो शहर की गलियों में चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं।

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