ताजणे ने जो कुआं खोदा उसका इस्तेमाल आज सभी दलित कर रहे हैं। ताजणे 8 घंटे मजदूरी करने के बाद करीब 6 घंटे रोज कुआं खोदने में लगाते थे। ताजणे द्वारा कुआं खोदने पर उनके पड़ोसी और परिजन मजाक उड़ाते थे। लोगों का मानना था कि ऐसे पथरीले इलाके में पानी कहां मिलेगा वो भी तब जबकि क्षेत्र के आसपास के तीन कुएं और बोरवेल सूख चुके थे।
बता दें कि कुआं खोदने के लिए करीब पांच लोगों की आवश्यकता होती है लेकिन ताजणे ने यह काम कर दिखाया। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को ताजणे ने बताया कि मैं गांव में लड़ाई झगड़ा नहीं चाहता लेकिन उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि हम गरीब दलित हैं। जिस दिन यह घटना हुई थी, मैं बहुत दुखी हुआ था। ताजणे ने यह भी कहा कि पत्नी को जब पानी नही दिया गया तो मैंने किसी से कुछ भी न मांगने की कसम खाई और मालेगांव से कुआं खोदने का सामान लेकर आए और फिर खुदाई शुरु कर दी। मैंने ऊपरवाले का शुक्रिया अदा करता हूं कि मुझे सफलता मिली।
ताजणे की पत्नी संगीता का कहना है कि मैंने अपने पति की कोई मदद नहीं की जब तक कुएं से पानी नहीं निकल गया।
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